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अपराधियों से भी नाता भ्रष्ट बेईमान इन्हे भाता

kaushaltiwari
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छत्तीसगढ के रमन राज में न केवल अपराध बढ रहे हैं बल्कि अपराधियों को सत्ता का भरपुर संरक्षण भी मिला है। भ्रष्ट बेईमान नौकरशाह हो या अपराध की दुनिया के बाहुबली सभी इस राÓय में फ़ल फ़ूल रहे हैं। अपराधियों और भ्रष्ट नौकरशाह के चलते आम लोगों का जीना तो दूभर हुआ ही है। राजनैतिक सूचिता की नई परिभाषा भी गढी गई। अपराधिक तत्वों के हौसले इतने बुलंद हैं कि पुलिस तक उन पर हाथ डालने से कतराती है और जिस पुलिस वाले ने ऐसी हिमाकत की या तो उसे प्रताडि़त किया गया या पिटाई तक हो गयी। शहर की सबसे नामी मस्जिद जामा मस्जिद के मुतव्ल्ली अब्दुल अजीम भोंदू को लेकर जो बवाल मचा है वह रमन राज की कार्यशैली पर तो सवाल उठाता ही है साथ ही सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कल तक मुख्यमंत्री से सीधे संबंध रखने वाले शख्स पर हाथ डालने की वजह क्या है।
रमन राज की दूसरी पारी में अपराध एवं भ्रष्टाचार में दुगने से अधिक इजाफ़ा हुआ है तो इसकी वजह सत्ता में बैठी भाजपाईयों की कार्यशैली है। अकेले राजधानी में तीन हजार से उपर फऱार वारंटी घूम रहे हैं तो सैकड़ों की संख्या में भ्रष्ट और बेईमान नौकरशाह सत्ता की नाक के बाल बने हुए हैं। मिलावटखोरी में आरोपी रहे बद्री जैसे लोगों को भाजपा टिकिट देती है तो अब्दुल अजीम भोंदू जैसे बाहुबलियों को गोद में बिठाती है। संसद जैसे पवित्र स्थान में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने वाले प्रदीप गाँधी जैसे लोग भाजपा और मुख्यमंत्री के रणनीतिकार बने हुए हैं तो बाबूलाल अग्रवाल जैसे लोग महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं।
सिफऱ् हवाला कांड में नाम आ जाने से संसद से इस्तीफ़ा देकर राजनैतिक सुचिता की परिभाषा गढऩे वाले लालकृष्ण आडवाणी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके जीते जी भाजपा की राजनीति में वे लोग सत्ता में बने या बैठे रह सकते हैं जिन पर कोयले की कालिख से लेकर बांध, नदी एवं तालाब तक बरबाद करने के आरोप लगे हैं।
यह बात कोई नकार नहीं सकता कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सत्ता में बैठने की कई वजहों में एक वजह कांग्रेस की कार्यशैली रही है। जहां अपराध से लेकर भ्रष्टाचार को फ़लने फ़ूलने का मौका लगा। लेकिन सत्ता में आते ही जिस तरह से भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को संरक्षण दिया गया वह भाजपा को शर्मशार करने वाला साबित हो रहा है। आरोपों को बहुमत के दम पर खारिज करने की कांग्रेसी शैली को भाजपा ने भी अपना लिया है और चुनावी चंदे के लिए या चुनावी फ़ायदे के लिए बेईमान और अपराधिक लोगों को खुले आम न केवल संरक्षण दिया गया बल्कि सत्ता से लेकर संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दी गई।
आंकड़े बताते हैं कि सत्ता में आने से पहले जिन भ्रष्ट अफ़सरों पर उंगली उठाई गई वे आज महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिन अपराधियों पर कार्यवाई नही करने का आरोप लगा वे आज या तो पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं या इन्हे संरक्षण दिया जा रहा है।
पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार और अपराध के आंकड़ों में जो तेजी आई है वह चौंकाने वाली है और यही हाल रह तो छत्तीसगढ को अपराधगढ़ के रुप में कुख्यात होने में समय नहीं लगेगा।
पुलिस सुत्रों की माने तो पूरे प्रदेश में फऱार आरोपियों की संख्या 15 हजार से उपर है। जिनमें से आधे Óयादा फऱार आरोपियों को राजनैतिक संरक्षण के चलते नहीं पकड़ा जा रहा है। ऐसे लोग न केवल सार्वजनिक सरकारी कार्यक्रमों में उपस्थित रहते हैं बल्कि पुलिस को आँख दिखाने से भी परहेज नहीं करते।
कमोबेश यही हाल भ्रष्ट नौकरशाहों का है। भ्रष्टाचार से लेकर दूसरी अनियमितता करने वाले अधिकारी कर्मचारी महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं ऐसे नौकरशाहों की संख्या भी सैकड़ों में है। जिनमें आईएस, आईपीएस से लेकर राÓय प्रशासनिक सेवा के अफ़सर भी शामिल हैं। इंजीनियरों के मामले में तो साफ़ होने लगा है कि जो जितना भ्रष्ट उसे उतने ही महत्वपूर्ण पद से नवाजा जाएगा।
प्रशासनिक सुत्रों का कहना है कि रमन राज में ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया गया है और रिटायरमेंट के बाद उन अधिकारियों को संविदा पर Óयादा रखा गया है जो अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्ट या विवादित माने जाते हैं।
बहरहाल रमन सरकार के भ्रष्टाचार पर सवाल उठने लगे हैं और आने वाले चुनाव में इसके असर से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
रमन राज की दूसरी पारी में अपराध एवं भ्रष्टाचार में दुगने से अधिक इजाफ़ा हुआ है तो इसकी वजह सत्ता में बैठी भाजपाईयों की कार्यशैली है। अकेले राजधानी में तीन हजार से उपर फऱार वारंटी घूम रहे हैं तो सैकड़ों की संख्या में भ्रष्ट और बेईमान नौकरशाह सत्ता की नाक के बाल बने हुए हैं। मिलावटखोरी में आरोपी रहे बद्री जैसे लोगों को भाजपा टिकिट देती है तो अब्दुल अजीम भोंदू जैसे बाहुबलियों को गोद में बिठाती है। संसद जैसे पवित्र स्थान में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने वाले प्रदीप गाँधी जैसे लोग भाजपा और मुख्यमंत्री के रणनीतिकार बने हुए हैं तो बाबूलाल अग्रवाल जैसे लोग महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं।
सिफऱ् हवाला कांड में नाम आ जाने से संसद से इस्तीफ़ा देकर राजनैतिक सुचिता की परिभाषा गढऩे वाले लालकृष्ण आडवाणी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके जीते जी भाजपा की राजनीति में वे लोग सत्ता में बने या बैठे रह सकते हैं जिन पर कोयले की कालिख से लेकर बांध, नदी एवं तालाब तक बरबाद करने के आरोप लगे हैं।
यह बात कोई नकार नहीं सकता कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सत्ता में बैठने की कई वजहों में एक वजह कांग्रेस की कार्यशैली रही है। जहां अपराध से लेकर भ्रष्टाचार को फ़लने फ़ूलने का मौका लगा। लेकिन सत्ता में आते ही जिस तरह से भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को संरक्षण दिया गया वह भाजपा को शर्मशार करने वाला साबित हो रहा है। आरोपों को बहुमत के दम पर खारिज करने की कांग्रेसी शैली को भाजपा ने भी अपना लिया है और चुनावी चंदे के लिए या चुनावी फ़ायदे के लिए बेईमान और अपराधिक लोगों को खुले आम न केवल संरक्षण दिया गया बल्कि सत्ता से लेकर संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दी गई।
आंकड़े बताते हैं कि सत्ता में आने से पहले जिन भ्रष्ट अफ़सरों पर उंगली उठाई गई वे आज महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिन अपराधियों पर कार्यवाई नही करने का आरोप लगा वे आज या तो पार्टी की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं या इन्हे संरक्षण दिया जा रहा है।
पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार और अपराध के आंकड़ों में जो तेजी आई है वह चौंकाने वाली है और यही हाल रह तो छत्तीसगढ को अपराधगढ़ के रुप में कुख्यात होने में समय नहीं लगेगा।
पुलिस सुत्रों की माने तो पूरे प्रदेश में फऱार आरोपियों की संख्या 15 हजार से उपर है। जिनमें से आधे Óयादा फऱार आरोपियों को राजनैतिक संरक्षण के चलते नहीं पकड़ा जा रहा है। ऐसे लोग न केवल सार्वजनिक सरकारी कार्यक्रमों में उपस्थित रहते हैं बल्कि पुलिस को आँख दिखाने से भी परहेज नहीं करते।
कमोबेश यही हाल भ्रष्ट नौकरशाहों का है। भ्रष्टाचार से लेकर दूसरी अनियमितता करने वाले अधिकारी कर्मचारी महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं ऐसे नौकरशाहों की संख्या भी सैकड़ों में है। जिनमें आईएस, आईपीएस से लेकर राÓय प्रशासनिक सेवा के अफ़सर भी शामिल हैं। इंजीनियरों के मामले में तो साफ़ होने लगा है कि जो जितना भ्रष्ट उसे उतने ही महत्वपूर्ण पद से नवाजा जाएगा।
प्रशासनिक सुत्रों का कहना है कि रमन राज में ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया गया है और रिटायरमेंट के बाद उन अधिकारियों को संविदा पर Óयादा रखा गया है जो अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्ट या विवादित माने जाते हैं। बहरहाल रमन सरकार के भ्रष्टाचार पर सवाल उठने लगे हैं और आने वाले चुनाव में इसके असर से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

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